Gambhir दोगले हैं : इंडिया के बल्लेबाज़ का सनसनीख़ेज़ प्रहार!




ये तो होना ही था। भारत में जो कोई भी बड़ा आदमी हो जाता है, उसकी आलोचना करने से लोग डरते हैं। कुछ ऐसा ही गौतम गंभीर के साथ हो रहा है। टीम इंडिया के कोच है, अपनी मर्ज़ी से सपोर्ट स्टाफ को लेकर आया है, टीम इंडिया के फ़िलहाल बाप हैं, इसलिए किसी में हिम्मत नहीं है कि उनके ख़िलाफ़ कुछ बोले। टीम इंडिया श्री लंका में सीरीज हारी, घर में न्यू ज़ीलैंड के ख़िलाफ़ 3-0 से हारी और ऑस्ट्रेलिया में 3-1 से हारी पर गंभीर के बारे में कोई नहीं बोल रहा है। हर कोई रोहित शर्मा या विराट कोहली के पीछे पड़ा है, पर गंभीर की कोचिंग पर कोई टिप्पणी नहीं हो रही है। टीम इंडिया ये श्रृंखला 4-1 से हारता अगर ब्रिसबेन का मैच वर्षा के व्यवधान के कारण ड्रा में ख़त्म ना होता। आख़िर ऑस्ट्रेलिया इंडिया से 200 रनों से पहली पारी में आगे थी। लेकिन गंभीर की आलोचना से सभी डरते हैं। कोई उनसे ये सवाल नहीं करता कि रविचंद्रन अश्विन से ऊपर वाशिंगटन सुंदर को पहले टेस्ट में क्यों खिलाया। कोई ये नहीं पूछता है कि देवदत्त पद्दीकाल किस मायने में सरफ़राज़ ख़ान से बेहतर थे। और क्यों ये भी नहीं पूछता कि रविचंद्रन अश्विन के बीच में टूर छोड़ने के पीछे की असली स्टोरी क्या है। गौतम गंभीर ख़िलाफ़ वो ही बोल सकता है जिसका ओहदा गंभीर के बराबर का है। ये ओहदा मनोज तिवारी का है। मनोज तिवारी बंगाल और दिल्ली के लिए घरेलू क्रिकेट खेल चुके हैं। दिल्ली और केकेआर के लिये वो जब खेले तो गंभीर उनके साथ के ही खिलाड़ी थे। अब मनोज तिवारी ने गंभीर पर एक से बढ़ कर एक कड़े प्रहार किए हैं। तिवारी कहते हैं कि ये ऐसा शख़्स है जो कहते नहीं थकते था कि बाहर के लोगों को कोच मत बनाओ, मत बनाओ क्योंकि वो इमोशनली हमारे खिलाड़ियों से नाता नहीं जोड़ पाते हैं। पर गंभीर ने क्या किया: कोच बनते ही रयान टेन दोएस्चे और मोरनी मार्केल को फ़ील्डिंग और गेंदबाज़ी के कोच के रूप में टीम में ले आये। तिवारी कहते है कि मेरी निगाह में तो गंभीर दोगले हैं। तिवारी आगे ये कहते है कि किस आधार पर गंभीर को कोच बनाया गया। कोच के रूप में उनका क्या अनुभव है। वो केकेआर के मेंटर थे। कोच नहीं। मेंटर और कोच में काफ़ी फ़र्क़ होता है। मेंटर एक तरह से बड़े भाई की तरह होता है। कोच को मैदान पर उतरकर खेल की बारीक्यों को खिलाड़ियों को समझाना पड़ता है, उनकी तकनीक आदि को दूरस्त करना होता है। गंभीर का ऐसा क्या अनुभव है जो कोच का हो? क्या उन्होंने स्टेट या किसी क्लब की भी कोचिंग कभी की है? तिवारी गंभीर पर आरोप लगाते है कि हर्षित राणा पहले टेस्ट में खिलाए गए और आकाश दीप को टीम से हटा दिया गया। पर आकाश दीप तो न्यू ज़ीलैंड के ख़िलाफ़ काफ़ी अच्छा प्रदर्शन करके ऑस्ट्रेलिया गये थे। पर राणा गंभीर के चहेते हैं, इसलिए खिलाए गए। और अगर राणा इतने ही अच्छे थे, तो उन्हें बाद में ड्राप क्यों कर दिया गया। राणा का रत्ती भर का रेड बॉल क्रिकेट में वो अनुभव नहीं है जो आकाश दीप का है। पर गंभीर तो अपनी मन मर्ज़ी के मालिक है। तिवारी का ये भी कहना है कि एक बार एक घरेलु मैच में गंभीर ने बीच मैदान पर मुझे गाली दी थी। और सौरव गांगुली को अपशब्द कहे थे। ये मैं नहीं कह रहा हूँ। जो भी वो मैच खेल रहे थे आप उनसे पूछ लीजिए। इसे कहते हैं झन्नाते का प्रहार। कहते हैं ना: बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी।